श्री चिंतामण गणेश मंदिर उज्जैन

उज्जयिनी (अवंतिका पुरी) म.प्र.

श्री चिंतामण गणेश मंदिर की वेबसाईट में आप का स्वागत है|

प्रातः 5 :00 से रात्रि 10:00 तक

प्रातः 7:00 चोला आरती

संध्या 7:30 भोग आरती

रात्रि 9:30 शयन आरती

जत्रा महापर्व - चैत्र मास में प्रत्येक बुधवार

गणपति महोत्सव - भाद्र पक्ष मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से अंनंत चतुर्दशी तक विशेष दर्शन एवं अनंत चतुर्दशी को चल समारोह

तिल महोत्सव- माघ मास में कृष्णपक्ष की संकष्टी चतुर्थी को सवा लाख तिल लड्डूओं का महाभोग

श्री चिंतामण गणेश मंदिर की वेबसाईट में आप का स्वागत है|

चिंतामन गणेश मंदिर उज्जैन के तीर्थ स्थलों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है । उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर भगवान श्री गणेश यह मंदिर फतेहाबाद रेलवे लाइन के समीप स्थित है । चिंतामन गणेश मंदिर में भगवान श्री गणेश के तीन रूप एक साथ विराजमान है, जो चितांमण गणेश, इच्छामण गणेश और सिद्धिविनायक के रूप में जाने जाते है। श्री चिंताहरण गणेश जी की ऐसी अद्भूत और अलोकिक प्रतिमा देश में शायद ही कहीं होगी। चिंतामणी गणेश चिंताओं को दूर करते हैं, इच्छामणी गणेश इच्छाओं को पूर्ण करते हैं और सिद्धिविनायक रिद्धि-सिद्धि देते हैं। इसी वजह से दूर-दूर से भक्त यहां खिंचे चले आते हैं।

स्वयं-भू स्थली के नाम से विख्यात चिंतामण गणपति की स्थापना के बारे में कई कहानियां प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी। सतयुग में राम, लक्ष्मण और सीता मां वनवास पर थे तब वे घूमते-घूमते यहां पर आये तब सीता मां को बहुत प्यास लगी । लक्ष्मण जी ने अपने तीर इस स्थान पर मारा जिससे पृथ्वी में से पानी निकला और यहां एक बावडी बन गई। माता सीता ने इसी जल से अपना उपवास खोला था। तभी भगवान राम ने चिंतामण, लक्ष्मण ने इच्छामण एवं सिद्धिविनायक की पूजा अर्चना की थी।

मंदिर के सामने ही आज भी वह बावडी मोजूद है। जहां पर दर्शनार्थी दर्शन करते है। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप महारानी अहिल्याबाई द्वारा करीब 250 वर्ष पूर्व बनाया गया था। इससे भी पूर्व परमार काल में भी इस मंदिर का जिर्णोद्धार हो चुका है। यह मंदिर जिन खंबों पर टिका हुआ है वह परमार कालीन हैं।

देश के कोने-कोने से भक्त यहां दर्शन करने आते है। यहां पर भक्त, गणेश जी के दर्शन कर मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगते है और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह पुनः दर्शन करने आते है और मंदिर के पीछे सीधा स्वास्तिक बनाता है। कई भक्त यहां रक्षा सूत्र बांधते है और मनोकामना पूर्ण होने पर रक्षा सूत्र छोडने आते है।

उज्जैन के मालवा क्षेत्र में सैंकडो वर्षों से परम्परा चली आ रही कि जो भी कोई शादी करता है तो उसके परिजन लग्न यहां लिखवाने आते है और शादी के बाद पति-पत्नी दोनों ही यहां आकर दर्शन करते है और वो लग्न यहां चिंतामण जी के चरणों में छोड़कर जाते है। दोनों पति-पत्नी चिंतामण गणेश जी प्रार्थना करते है कि हमारी सारी चिंताओं को दूर कर हमे सुखी जीवन प्रदान करना।

गणेश चतुर्थी के अवसर पर चिंतामन गणेश मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण भगवान गणेश का दर्शन करने आते है। रक्षाबंधन के अवसर पर श्रद्धालुगण ( महिलाऐं ) बड़ी संख्या में अपनी राखियाँ भगवान गणेश को भेट करती है । किसी भी धार्मिक आयोजन, शुभकार्य, विवाह इत्यादि का प्रथम निमंत्रण भगवान चिंतामन गणेश को ही दिया जाता है ।

चैत्रमास की जत्रा

प्रथम पूज्य गणेश भगवान केा धन्यवाद देने के लिए इस पावन पर्व का आयोजन किया जाता है। जत्रा की शुरुआत चैत्र मास के बुधवार से हेाती हैं । जो इस महीने के प्रति बुधवार को मनाया जाता है । आसपास के ग्रामीण इलाकों के किसान मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। अब जत्रा की इस परंपरा में अब किसानेां के साथ साथ आम लोग भी इसमें शामिल हेा गए हैं।

जत्रा के समय चिंतामण के अलावा अन्य गणेश मंदिरों में जत्रा की धूम रहती है। गजानन भगवान का इस दिन विशेष श्रृंगार किया जाता है। मंदिर का प्रांगण की सजावट बहुत ही आकर्षित हेाती है । दुकाने सजी हुई व लोगों का जत्रा केा लेकर बहुत उत्साहित नजर आते हैं । चारों ओर लोगों की चहल पहल दिखाई पड़ती है।

इस उत्सव के दौरान भगवान केा विशेष भोग भी लगाया जाता है। लोग मंदिरों में अपनी मान्याता पूरी हेाने पर क्विटलों से भोग लगाते हैं। इसमें लोंगो द्वारा दान पुण्य भी किया जाता है। चैत्र माह के आखिरी बुधवार को इसका समापन हेा जाता है।

तिल महोत्सव

मकर संक्रांति पर पतंग के साथ तिल्ली का भी महत्व है और पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान गणेश की माघ मास में तिल चतुर्थी पर तिल्ली का भोग लगाने का महत्व है|महिलाएं इस दिन व्रत करती है| और चिंतामण गणेश को तिल्ली का भोग लगाती है| समय के अनुसार तिल्ली चतुर्थी पर अब चिंतामण गणेश पर भव्य आयोजन होने लगा और सवा लाख लड्डूओं का महाभोग लगने लगा है| उज्जैन के साथ आस पास के लोग भी हजारो की संख्या में आने लगे और अब चतुर्थी पर भव्य तिल मेले के साथ भक्तो एवं ग्रामवासी के सहयोग से फरियाली खिचड़ी , दूध,जलेबी , हलवे की व्यवस्था इस दिन भक्तो के लिए रहती है| तिल चतुर्थी पर दर्शन मात्र से ही सभी भक्त चिंता से मुक्त रहते है|

कैसे पहंचे :
निकटतम रेल्वे स्टेशन यहाँ से करीब 8 किलोमीटर दूर है|
निकटतम बस स्टेशन यहाँ से करीब 8 किलोमीटर दूर है|
निकटतम हवाई अड्डा इंदौर यहां से करीब 60 किलोमीटर दूर है।
ठहरने के लिए यहां होटल और धर्मशालाएं भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं।
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