चिंतामण गणेश मंदिर का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। यह मंदिर राजा दशरथ के समय से जुड़ा हुआ माना जाता है, जब भगवान श्री रामचंद्रजी ने यहां पिंडदान के लिए पूजा की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वही स्थान है जहां माता सीता ने वनवास के दौरान अपनी प्यास बुझाने के लिए जल प्राप्त किया। इस स्थान को स्वयं-भू क्षेत्र माना जाता है, जिसका मतलब है कि भगवान गणेश की मूर्ति अपने आप ही प्रकट हुई थी। यह मंदिर अपनी प्राचीन परंपरा और महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के कारण विशेष स्थान रखता है।